भारत के न्यायिक इतिहास में आज एक और महत्वपूर्ण पन्ना जुड़ गया। जस्टिस सूर्यकांत ने मंगलवार को देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ग्रहण की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक सादे किंतु गरिमामय समारोह में उन्हें पद की शपथ दिलाई। इसके साथ ही उन्होंने जस्टिस भूषण आर. गवई की जगह लेते हुए देश के सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख की जिम्मेदारी संभाल ली है। जस्टिस सूर्यकांत के रूप में भारत को एक ऐसे CJI मिले हैं, जिनका न्यायिक अनुभव, संवैधानिक समझ और निष्पक्ष निर्णय क्षमता का लंबा इतिहास रहा है। उनके कार्यकाल की अवधि 15 महीने होगी और वह 9 फरवरी 2027 तक इस पद पर बने रहेंगे।
जस्टिस गवई ने अनुच्छेद 124(2) के तहत भेजा था नाम
CJI भूषण आर. गवई 65 वर्ष की आयु सीमा पूरी करने के बाद सेवानिवृत्त हो रहे हैं। परंपरा के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट का सबसे वरिष्ठ जज ही अगला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है। इसी सिलसिले में CJI गवई ने संविधान के अनुच्छेद 124 की धारा 2 के तहत जस्टिस सूर्यकांत के नाम की सिफारिश की थी। राष्ट्रपति ने इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए उन्हें 30 अक्टूबर 2025 को ही CJI नियुक्त कर दिया था।
शपथ समारोह में देश की शीर्ष नेतृत्व मौजूद
राष्ट्रपति भवन में हुए शपथ ग्रहण समारोह में देश के शीर्ष नेतृत्व ने उपस्थिति दर्ज कराई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल सहित कई केंद्रीय मंत्री और शीर्ष अधिकारी इस अवसर पर मौजूद थे। समारोह में न्यायपालिका, सेना, नौकरशाही और कूटनीतिक जगत से जुड़े प्रमुख लोग भी उपस्थित थे। यह आयोजन न केवल एक संवैधानिक प्रक्रिया थी, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और न्यायपालिका की निरंतरता का प्रतीक भी रहा।
कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं जस्टिस सूर्यकांत
अपने लंबे न्यायिक करियर के दौरान जस्टिस सूर्यकांत कई बड़े और ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहे हैं। उनकी बेंच ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से जुड़े महत्वपूर्ण फैसलों में हिस्सा लिया था। इसके अलावा, हाल ही में उन्होंने बिहार में SIR विवाद से जुड़े मामलों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने चुनाव आयोग को SIR के दौरान हटाए गए 65 लाख वोटरों की सूची सार्वजनिक करने का आदेश दिया था, जो पारदर्शिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया। इसके अलावा, वे कई संवैधानिक और प्रशासनिक मुद्दों पर सख्त रुख और स्पष्ट न्यायिक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। उनके फैसले अक्सर न्यायिक समुदाय और विधि विशेषज्ञों के बीच चर्चा का विषय रहे हैं।
हरियाणा के पहले मुख्य न्यायाधीश
जस्टिस सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार में हुआ था। वह हरियाणा से आने वाले पहले मुख्य न्यायाधीश बने हैं। उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से मास्टर्स की डिग्री हासिल की और इसके बाद वकालत तथा न्यायिक सेवा में कदम रखा। उनकी न्यायिक यात्रा में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में जज की भूमिका, फिर हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस बनने तक का सफर शामिल है। 2019 में वे सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए।
मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस सूर्यकांत के सामने कई महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामलों की सुनवाई की जिम्मेदारी है। इनमें चुनाव सुधार, डिजिटल निजता, न्यायिक सुधार, राज्यों के बीच विवाद, संवैधानिक व्याख्याएं और कई लंबित जनहित याचिकाएं शामिल हैं। उनसे उम्मीद की जा रही है कि वे न्यायपालिका को अधिक आधुनिक, पारदर्शी और प्रभावी बनाने की पहल को आगे बढ़ाएंगे। तकनीक आधारित सुनवाई प्रणाली, लंबित मामलों को कम करना और न्यायपालिका की क्षमता बढ़ाना भी उनके कार्यकाल के प्रमुख लक्ष्य हो सकते हैं।