मुंबई बीएमसी चुनाव से पहले बड़ा राजनीतिक बदलाव: शरद पवार की पार्टी ने राज और उद्धव ठाकरे का साथ चुना, कांग्रेस अकेले लड़ सकती है चुनाव

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Posted On:Monday, November 24, 2025

मुंबई में होने वाले आगामी बीएमसी चुनाव से पहले महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा फेरबदल देखने को मिल रहा है। राष्ट्रीयवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के नेता शरद पवार ने महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए घोषित किया है कि उनकी पार्टी इस चुनाव में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे का साथ देगी। इस घोषणा के बाद राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है कि कांग्रेस अब बीएमसी चुनाव अकेले लड़ सकती है, क्योंकि उसकी शरद पवार से की गई गठबंधन की कोशिश सफल नहीं हो सकी।

कांग्रेस को झटका — पवार ने चुना राज और उद्धव का साथ

सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस ने हाल ही में शरद पवार से संपर्क साधा था और आने वाले म्युनिसिपल चुनावों में कांग्रेस-एनसीपी (एसपी) गठबंधन की पेशकश की थी। लेकिन शरद पवार ने बीजेपी को टक्कर देने के लिए अपनी रणनीति बताते हुए राज ठाकरे की मनसे और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) के साथ चुनावी मैदान में उतरने का निर्णय किया। यह फैसला कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस चाहती थी कि गठबंधन महाविकास आघाड़ी की तर्ज पर हो, जिसमें मनसे को शामिल न किया जाए। लेकिन शरद पवार की पार्टी ने यह स्पष्ट कर दिया कि बीजेपी को हराने के लिए विपक्ष का व्यापक एकजुट होना जरूरी है, और इसके लिए वे मनसे को भी साथ लेने को तैयार हैं।

मनसे का दावा—हम महाविकास आघाड़ी का हिस्सा नहीं

राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने पवार के इस निर्णय के बाद बयान जारी किया कि उनकी पार्टी महाविकास आघाड़ी (MVA) का हिस्सा नहीं है। इसके बावजूद शरद पवार द्वारा मनसे के साथ जाने का निर्णय नई राजनीतिक समीकरणों को जन्म दे रहा है। मनसे का रुख यह दर्शाता है कि वे अपना स्वतंत्र राजनीतिक अस्तित्व बनाए रखना चाहते हैं, लेकिन बीजेपी विरोधी दलों के साथ तालमेल की संभावना भी खुली रखे हुए हैं।

कांग्रेस ने पहले ही जताई थी आपत्ति — मनसे के साथ नहीं लड़ेंगे

कांग्रेस की ओर से इस मामले में मतभेद पहले ही सामने आ चुके थे। कुछ दिनों पहले कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल ने शरद पवार से मुलाकात कर बीएमसी चुनाव में सीट साझा करने की इच्छा जताई थी, लेकिन साथ ही यह साफ कहा था कि मनसे को गठबंधन में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। कांग्रेस की राय थी कि मनसे पूर्व में कांग्रेस-एनसीपी के खिलाफ चुनाव लड़ती रही है और उसकी विचारधारा उनसे मेल नहीं खाती। इसलिए कांग्रेस नहीं चाहती थी कि मनसे को किसी भी साझा मोर्चे में शामिल किया जाए।


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