काशी एक पवित्र शहर है जो दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है। सनातन, बौद्ध और जैन सभी धर्मों में इस शहर का वर्णन करने वाले लेख हैं। सनातन धार्मिक परंपराओं के अनुसार, यह पवित्र युग में भगवान विष्णु की पहली नगरी थी। ब्रह्माजी का सिर शिव के करताल पर लगा तो भगवान शिव ने क्रोधित होकर पांचवां सिर जमीन से काट दिया। शिव के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, ब्रह्माजी का सिर शिव के कार्यों का पालन करता था। एक बार जब भगवान शिव काशी आए तो ब्रह्माजी का सिर उनके कर्मों से अलग हो गया था। भगवान शिव उस समय ब्रह्मा की हत्या से मुक्त हो गए थे। यह जानकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने काशी नगरी में रहने की इच्छा व्यक्त की, जो उन्होंने भगवान विष्णु से मांगी।
माता अन्नपूर्णा की कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय पृथ्वी पर अन्न की कमी हो गई थी। इससे दुनिया भर में हाहाकार मच गया। वर्तमान समय में, विशेषज्ञ भविष्यवाणी करते हैं कि निकट भविष्य में ग्रह को आपदा का सामना करना पड़ेगा। उस समय पृथ्वी के निवासियों द्वारा त्रिदेव की पूजा की जाती थी, और उन्होंने उन्हें खाद्य संकट के बारे में सचेत किया। उसके बाद आदिशक्ति मां पार्वती और भगवान शिव धरती पर आए। प्रकृति की अनुपम रचना पर रहने वाले लोगों को दुखी देखकर माता पार्वती ने अन्नपूर्णा का रूप धारण किया और भगवान शिव को भोजन कराया। भगवान शिव ने उसी क्षण ग्रह के निवासियों को भोजन दिया। अनाज को बाद में कृषि में लगाया गया था। फिर भोजन सर्वनाश समाप्त हो गया।
माता अन्नपूर्णा मंदिर
बाबा की नगरी काशी में माता अन्नपूर्णा मंदिर है, जो विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। यह तीर्थ माता अन्नपूर्णा को समर्पित है। धार्मिक मान्यता है कि प्रतिदिन मां अन्नपूर्णा की पूजा करने से परिवार में कभी अन्न की कमी नहीं होती है। ग्रंथों का अर्थ है कि भोजन को सम्मान और ध्यान से व्यवहार किया जाना चाहिए। भूल जाने पर भी अन्न का अनादर नहीं करना चाहिए। साथ ही अपनी इच्छा के अनुसार ही भोजन देना चाहिए। भोजन को कभी भी फेंकना नहीं चाहिए। भोजन फेंके जाने से मां अन्नपूर्णा नाराज हैं। इससे घर की लक्ष्मी का नाश होता है और घर में दरिद्रता का वास होता है। मंदिर के कई विशिष्ट चित्रों में से एक में माता अन्नपूर्णा रसोई में प्रकट होती हैं। वहीं, प्रांगण में कई मूर्तियां भी हैं। इनमें मां काली, पार्वती, शिव सहित कई अन्य देवी-देवता भी हैं। हर साल अन्नकूट उत्सव के दौरान बड़ी संख्या में भक्त मंदिर आते हैं। वहीं, हर दिन बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद इस मंदिर को देखने के लिए भक्त जरूर आते हैं।