मुंबई, 23 दिसंबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। अब 5वीं और 8वीं क्लास के एग्जाम में फेल होने वाले स्टूडेंट्स को पास नहीं किया जाएगा। केंद्र सरकार ने सोमवार को ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ खत्म कर दी है। पहले इस नियम के तहत फेल होने वाले स्टूडेंट्स को दूसरी क्लास में प्रमोट कर दिया जाता था। सरकार के नए नोटिफिकेशन के मुताबिक फेल होने वाले स्टूडेंट्स को 2 महीने के अंदर दोबारा परीक्षा देने का मौका दिया जाएगा। अगर वे दोबारा फेल होते हैं, तो उन्हें प्रमोट नहीं किया जाएगा, बल्कि जिस क्लास में वो पढ़ रहे थे उसी में दोबारा पढ़ेंगे। सरकार ने इसमें एक प्रावधान भी जोड़ा है कि 8वीं तक के ऐसे बच्चों को स्कूल से निकाला नहीं जाएगा। केंद्र सरकार की नई पॉलिसी का असर केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों और सैनिक स्कूलों सहित करीब 3 हजार से ज्यादा स्कूलों पर होगा। 16 राज्य और 2 केंद्र शासित प्रदेश (दिल्ली और पुडुचेरी) नो-डिटेंशन पॉलिसी पहले पहले ही खत्म कर चुके हैं। शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक स्कूली शिक्षा राज्य का विषय है, इसलिए राज्य इस संबंध में अपना निर्णय ले सकते हैं।
आपको बता दे, 2016 में सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन यानी CABE ने ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट मिनिस्ट्री को ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ हटाने का सुझाव दिया था। CABE ने कहा कि इस पॉलिसी के वजह से स्टूडेंट्स के सीखने का स्तर गिर रहा है। नो डिटेंशन पॉलिसी के अंतर्गत स्टूडेंट्स का मूल्यांकन करने के लिए टीचर्स के पास पर्याप्त साधन नहीं थे। ज्यादातर मामलों में स्टूडेंट्स का मूल्यांकन ही नहीं किया जाता था। देशभर में 10% से भी कम स्कूलों में पॉलिसी के हिसाब से टीचर्स और इंफ्रास्ट्रक्चर पाया गया। पॉलिसी में मुख्य रूप से एलिमेन्ट्री एजुकेशन में स्टूडेंट्स का एरोल्मेंट बढ़ाने पर फोकस किया गया जबकि बेसिक शिक्षा का स्तर गिरता रहा। इससे स्टूडेंट्स पढ़ाई को लेकर लापरवाह हो गए क्योंकि अब उन्हें फेल होने का डर नहीं था। 2016 की एनुअल एजुकेशन रिपोर्ट के अनुसार क्लास 5वीं के 48% से कम स्टूडेंट्स ही दूसरी (2) क्लास का सिलेबस पढ़ पाते हैं। ग्रामीण स्कूलों में आठवीं क्लास के सिर्फ 43.2% स्टूडेंट्स ही सिम्पल डिवीजन कर सकते हैं। 5वीं क्लास में चार में से सिर्फ एक स्टूडेंट ही अंग्रेजी का वाक्य पढ़ सकता है। कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने प्रारंभिक शिक्षा पर आर्टिकल 16 के इस असर को लेकर चिंता जताई थी। शिक्षा पर टीएसआर सुब्रमण्यम कमेटी और CABE के तहत बनाई गई वासुदेव देवनानी कमेटी ने भी नो डिटेंशन पॉलिसी को रद्द करने की सिफारिश की थी। साथ ही, नो डिटेंशन पॉलिसी राइट टू एजुकेशन 2009 का हिस्सा थी। ये सरकार की पहल थी जिससे भारत में शिक्षा की स्थिति में सुधार हो सके। इसका उद्देश्य था कि बच्चों को शिक्षा के लिए बेहतर माहौल दिया जा सके ताकि वो स्कूल आते रहें। फेल होने से स्टूडेंट्स के आत्मसम्मान को ठेस पहुंच सकती है। साथ ही फेल होने से बच्चे शर्म भी महसूस करते हैं जिससे पढ़ाई में वो पिछड़ सकते हैं। इसलिए नो डिटेंशन पॉलिसी लाई गई जिसमें 8वीं तक के बच्चों को फेल नहीं किया जाता।