दिग्गज फिल्म निर्देशक सुनील दर्शन एक बार फिर निर्देशन की दुनिया में लौट रहे हैं अपनी आगामी रोमांटिक फिल्म अंदाज़ 2 के साथ, जो 2003 मेंआई उनकी हिट फिल्म अंदाज़ का सीक्वल है। हाल ही में , फिल्म के प्रचार के साथ-साथ उन्होंने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की मौजूदा स्थिति पर भीखुलकर अपनी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि आज इंडस्ट्री में सबसे बड़ी कमी है अच्छी और मौलिक स्क्रिप्ट्स की। सुनील दर्शन साफ कहतेहैं, “हमारे पास स्क्रिप्ट्स ही नहीं हैं। पहले डायरेक्टर फिल्म बनाता था, अब स्टार फिल्म बनाता है।” उनके अनुसार, पिछले 10–15 वर्षों में फिल्मों कीकमान निर्देशकों और लेखकों के हाथों से निकलकर पूरी तरह स्टार्स के पास चली गई है।
वे यह भी मानते हैं कि इस बदलाव ने सिनेमा को एक कॉरपोरेट बिज़नेस बना दिया है, जहां संस्कृति और संवेदना से जुड़ी कहानियों की जगह केवलमार्केटिंग और स्टार पॉवर ने ले ली है। सुनील दर्शन कहते हैं कि अब विदेशों से डिग्री लेकर आए लोग इंडस्ट्री में नरेटिव तय कर रहे हैं, जिन्हें भारतीयसंस्कृति की न तो समझ है और न ही जुड़ाव। इसका नतीजा यह हो रहा है कि दर्शक खुद को उन कहानियों से जोड़ नहीं पा रहे हैं जो उनके आसपासकी जिंदगी को दिखाने के बजाय सिर्फ ग्लैमर पर टिकी हैं।
सुनील दर्शन का मानना है कि सिनेमा केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि यह विचारों को आकार देने की ताकत रखता है। “सिनेमा आपकेविचारों को संचालित करता है – एक सोच आपके भीतर बोता है,” वे कहते हैं। लेकिन जब यह सोच बाहरी दबावों या बाज़ार की मांगों से नियंत्रितहो, तो सिनेमा अपनी आत्मा खो बैठता है। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि इंडस्ट्री के भीतर ही गहरा विभाजन है। “सब एक-दूसरे के खिलाफ हैं।पिछले पांच सालों से लगातार अशांति और मनमुटाव चल रहा है,” वे बताते हैं। उनके अनुसार जब तक यह सोच नहीं बदलेगी, तब तक कोई भीसुधार संभव नहीं है।
उन्होंने मीडिया से भी ज़िम्मेदारी से पेश आने की अपील की। “मीडिया सब कुछ सनसनीखेज़ बना देता है। अगर मीडिया वाकई बदलाव देखना चाहताहै, तो यह उनकी भी ज़िम्मेदारी बनती है,” वे कहते हैं। अंदाज़ 2, जिसमें नए कलाकार आयुष कुमार, आकैशा और नताशा फर्नांडेज़ मुख्य भूमिकाओं मेंहैं, 8 अगस्त 2025 को रिलीज़ होगी। इस फिल्म के ज़रिए दर्शन न सिर्फ रोमांस को दोबारा पर्दे पर लाना चाहते हैं, बल्कि सिनेमा की ईमानदारी औरभावनात्मक गहराई को भी पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं।
सुनील दर्शन की बातें आज की फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक चेतावनी भी हैं और एक उम्मीद भी। वे हमें याद दिलाते हैं कि भारतीय सिनेमा की असलीताकत न सितारों में है, न बजट में, बल्कि उन कहानियों में है जो दिल से कही जाती हैं और दिलों तक पहुँचती हैं।